Surat: ‘The Diamond City of India’ कैसे ‘Israel’ को पीछे छोड़कर ‘सूरत’ बना ‘Diamond Hub of World’💍

यह बात 1668 की है फ्रेंच किंग लुई 14 ने
एक बेश कीमती ब्लू डायमंड खरीदा यह 45.5 2
कैरेट का रेयर डायमंड था जो अल्ट्रावायलेट
लाइट में रंग बदलकर लाल हो जाता था इसी
वजह से यह हीरा काफी रहस्यमय था जिसे किंग
ने गिफ्ट किया अपने क्वीन फ्रांक ओ बिगने
को क्वीन फ्रांक को यह डायमंड बेहद पसंद
आया लेकिन इसे पहनने के कुछ दिनों बाद ही
उनकी लाइफ में अचानक उथल-पुथल शुरू हो गई
किंग और क्वीन अपनी परेशानियों की वजह समझ
नहीं पाए और विरासत में उन्होंने यह हीरा
नए किंग लुई 15 और मैरी लेस्का को दे दिया
इन दोनों की लाइफ में भी कुछ ठीक नहीं रहा
और जब यह डायमंड लुई 16 को मिला तो उनके
राज में फ्रेंच रिवोल्यूशन शुरू हो गया
लुई 16 ने इसे कुचलने की बहुत कोशिश की
लेकिन नेपोलियन बोनापार्ट की लीडरशिप में
फ्रेंच लोगों ने उनकी सत्ता उखाड़ फेंकी
गुस्से में फ्रांस के क्रांतिकारियों ने
पूरी रॉयल फैमिली का सर कलम कर दिया इसी
दौरान उनका यह बेश कीम डायमंड भी चुरा
लिया गया सालों बाद यह हीरा पहुंचा मशहूर
ज्वेलरी ब्रैंड काटिए के पास तब काटिए ने
एक वाइट डायमंड नेकलेस में अटैच करके इसे
और भी खास बना दिया 1912 में कार्टिया के
स्टोर से यह नेकलेस एडवर्ड बिल मैकलिन ने
अपनी वाइफ एवलिन वल्स मैकलिन के लिए खरीदा
यह दोनों माइनिंग कंपनी के ओनर थे और काफी
रिच थे लेकिन इस हीरे का असर उनकी लाइफ पर
भी पड़ा और उन्हें अपने दो बच्चे खोने
पड़े 1958 में यह हीरा पहुंचा हैरी
विंस्टन के पास विंस्टन उस दौर के मशहूर
जोहरी थे डायमंड तलाशने में वह इतने माहिर
थे कि उन्हें हीरो का राजा कहा जाता था
कहते हैं कि वह इस डायमंड के कर्स से
वाकिफ थे यानी उन्हें मालूम था कि यह हीरा
श्रापित है इसलिए उन्होंने इसे एक
म्यूजियम को डोनेट कर दिया और तब से यह
हीरा वही है 1966 में आई कार्ल शुगर की
बुक द अनएक्सप्लेंड मिस हीरे की कहानी है
जिसका नाम है द होप द होप को भी कोहिन और
ब्लैक डायमंड की तरह भारत से चुराया गया
था भारत ने दुनिया को कई और बेशकीमती हीरे
दिए हैं इतिहास बताता है कि 1700 तक
इंडिया वर्ल्ड का इकलौता डायमंड हब था
ब्लैक डायमंड दरिया ए नूर द रिजेंट
ड्रेस्ट एंड ग्रीन और द ग्रेट मुगल डायमंड
जैसे बेशकीमती हीरे भारत से ही निकले थे
खुद मार्को पोलो और जीन बैप्स जैसे
ट्रैवलर्स ने लिखा है कि उस वक्त गोलकुंडा
दुनिया का सबसे बड़ा डायमंड हब था
गोलकुंडा के हीरे इतने मशहूर थे कि 18th
सेंचुरी में पुर्तगीज ब्राजील के हीरो को
गोलकुंडा डायमंड बताकर बेचा करते थे जब
भारत में डायमंड रिजर्व कम होने लगा तब
दुनिया के दूसरे देशों में डायमंड
प्रोडक्शन शुरू हुआ 19th सेंचुरी में
डायमंड बिजनेस पर जुश लोगों की मोनोपोली
थी यह लोग बेल्जियम के एंटवर्प में रो
डायमंड सेल करते जो पॉलिश और कटिंग के लिए
जाते अमेरिका और यूरोप लेकिन फिर वक्त
बदला और डायमंड के चमचमाते बिजनेस में
एंट्री मारी पालनपुरी जैनों और
काठियावाड़ी पटेलों ने देखते ही देखते
इन्होंने डायमंड बिजनेस में ऐसा सिक्का
जमाया जिसने एक पूरे शहर की तकदीर बदल कर
रख दी यह शहर था सूरत वो सूरत जहां ना कोई
डायमंड माइन थी ना ही इसका हीरो से कोई
लेना देना था सदियों पहले दुनिया इसे
टेक्सटाइल हब के नाम से जानती थी आसपास
कॉटन प्रोडक्शन अच्छा था इसलिए यहां कपड़ा
साड़ियां और चद्दर बनती थी लेकिन आज
वर्ल्ड के 90 पर हीरे सूरत में ही तराशे
जाते हैं दुनिया के हर 12 डायमंड में से
11 यही तैयार होते हैं अकेले सूरत में 8
लाख डायमंड वर्कर काम करते हैं यह शहर हर
साल 15 बिलियन डॉलर का डायमंड एक्सपोर्ट
करता है डायमंड सिटी के नाम से मशहूर इस
सिटी में स्वीपर्स कचरा फेंकने से पहले भी
उसे छानकर हीरे ढूंढते हैं वहीं दीपावली
पर अपने एंप्लॉयज को फ्लैट्स गाड़ी और
ज्वेलरी जैसे गिफ्ट देने वाले सूरत के ये
डायमंड मर्चेंट्स ही होते हैं हीरा ही है
जिसके एक्सपोर्ट से सूरत की जीडीपी 7
सालों में 11.5 पर बढ़ गई वहीं नॉमिक
टाइम्स कहता है कि 2035 तक यह दुनिया के
फास्टेस्ट ग्रोइंग शहरों में से एक होगा
लेकिन सवाल आता है कैसे जिस शहर का हीरे
से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं वो
डायमंड्स का हब कैसे बन गया कैसे
गुजरातियों ने यहूदियों के बिजनेस पर
सिक्का जमाया कैसे होता है सूरत में
डायमंड ट्रेड और क्या है इसके डायमंड
कैपिटल ऑफ इंडिया बनने की कहानी इन सभी
सवालों का जवाब छिपा है सूरत के इतिहास की
गहराइयों में जिसे जानने के लिए हमें
सुननी होगी कहानी चम जमाते हीरो
[संगीत]
की हीरा बनता है कार्बन से अर्थ के अंदर
बहुत गहराई में जहां कार्बन होता है वहां
अच्छा टेंपरेचर और प्रेशर पाकर कार्बन
डायमंड में बदल जाता है लेकिन यहीं अगर
उसे हाइड्रोजन और टेंपरेचर का सही
कॉमिनेशन मिल जाए तो यह कार्बन डाइऑक्साइड
बनकर उड़ भी जाता है इसीलिए डायमंड नने का
प्रोसेस काफी हार्ड होता है जो लाखों
वर्षों तक चलता है हीरे की सबसे अच्छी बात
यह होती है कि इसमें मिलावट नहीं की जा
सकती आमतौर पर डायमंड ऑरेंज येलो या
ट्रांसपेरेंट होते हैं रेड पिंक और ग्रीन
कलर में मिलने वाले डायमंड काफी रेयर होते
हैं रेयरेस्ट ऑफ द रेयर होता है ब्लू
डायमंड लेकिन बहुत से बेशकीमती डायमंड्स
को कस्ट यानी कि श्रापित माना जाता है ऐसा
क्यों है इसकी कहानी हम आपको बाद में
सुनाएंगे बस यह जान लीजिए कि सदियों पहले
एक दौर ऐसा भी था जब यूरोप और दूसरे देशों
में हीरे की माइनिंग होती ही नहीं थी
दुनिया को हीरे के बारे में बताया इंडिया
ने और 1500 इयर्स तक यह वर्ल्ड का इकलौता
डायमंड सोर्स रहा यहां मध्य प्रदेश के
पन्ना में हीरो की खान थी 1675 में पन्ना
सिंह छत्रसाल ने यहां हीरे की माइनिंग
शुरू करवाई पन्ना के अलावा कृष्णा महानदी
और नर्मदा रिवर बैंक पर भी हीरों की
माइनिंग होती थी लेकिन सबसे बड़ा नाम था
गोलकुंडा का तेलंगाना की कैपिटल सिटी
हैदराबाद से 7 माइल्स की दूरी पर बसे
गोलकुंडा की कोलोर माइंस से नायाब हीरे
निकलते थे 16th से लेकर 19th सेंचुरी तक
यह माइंस हीरो का गढ़ र जहां से कोहिनूर
रीजेंट नासक और द होप जैसे एक से बढ़कर एक
बेशकीमती हीरे निकले गोलकुंडा डायमंड का
कलर और शेप खास होते थे यूरोप में इनकी
जबरदस्त डिमांड थी यूरोप में गोलकुंडा का
मतलब ही बहुत अधिक धन संपत्ति वाली जगह
माना जाता था और ये लोग इन हीरो की मुंह
मांगी कीमत देते थे इसीलिए बहुत से
मर्चेंट भारत आकर इन डायमंड्स को सड़क के
रास्ते यूरोप ले जाते जहां इनकी
प्रोसेसिंग होती वेनिस में जी हां द
फ्लोटिंग सिटी के नाम से फेमस वेनिस उन
दिनों वर्ल्ड डायमंड सेंटर हुआ करता था
हालांकि जब पुर्तगीज ने इंडिया के लिए सी
रूट की खोज की तो उन्होंने इस ट्रेड को
एंटवर्प शिफ्ट कर दिया एंटवर्प बेल्जियम
की एक पीसफुल सिटी थी जो बहुत ही जल्द
डायमंड ट्रेड के लिए मशहूर हो गई लेकिन
फिर आया 1700 और भारत में हीरे का भंडार
कम होने लगा 1726 में जाकर पहली बार
ब्राजील में डायमंड की माइनिंग शुरू हुई
हालांकि यहां के हीरे घटिया क्वालिटी के
होते थे इसीलिए पुर्तगीज इन्हें गोलकुंडा
डायमंड बताकर यूरोप में बेचा करते थे
ब्राजील के बाद कनाडा चाइना तंजानिया साउथ
अफ्रीका और रोस में भी डायमंड की माइनिंग
शुरू हुई जिसकी वजह से हीरे की सप्लाई बढ़
गई कहते हैं कि ओवर सप्लाई और डिमांड घटने
के कारण हीरे का प्राइस कम होने लगा जिससे
बहुत सी डायमंड कंपनीज टेंशन में आ गई
क्योंकि डायमंड की माइनिंग काफी मुश्किल
थी और इसकी पॉलिशिंग काफी महंगी ऊपर से
लोग इसे इतना वैल्यू भी नहीं देते थे
इंडिया के अलावा और भी अलग-अलग देशों में
डायमंड को साधारण जेम स्टोन ही मानते थे
और उन्हें डायमंड से ज्यादा इंटरेस्ट
गोल्ड में था ओवर सप्लाई होने के कारण यह
और सस्ते हो गए फिर भी हीरे के कारोबार
में तगड़ा मुनाफा था इसीलिए 1900 में माव
जीवन वाला ब्रदर्स गंदा भाई कुबेर दास और
रंगीलदास कुबेर दास ने डायमंड कटिंग और
पॉलिशिंग का एक स्मॉल स्केल बिजनेस सेटअप
किया ये दोनों ईस्ट अफ्रीका से एक डायमंड
कटर लेकर आए थे और इन्होंने सबसे पहले
सूरत में हीरे तराशने की शुरुआत की इतिहास
बताता है कि यह पहली बार था जब ताप्ती नदी
के किनारे बसा सूरत हीरे से रूबरू हो रहा
था लेकिन अमीरी तो इस शहर ने हमेशा से ही
देखी थी सूरत यानी कि चेहरा महाभारत में
इसका नाम सूर्यपुर मिलता है कहानियां
बताती है कि 1496 में गोपी नाम के एक
मर्चेंट ने यहां शहर बसाया
और गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह 10
सेकंड से इसका नाम सूर्यपुर रखने की
परमिशन मांगी लेकिन मुजफ्फर शाह कट्टर
इस्लामिक था इसलिए उसे यह नाम पसंद नहीं
आया उसने होली कुरान के चैप्टर सुरह के
नाम को थोड़ा सा चेंज करके इस सिटी का नाम
सूरत रख दिया जो उस दौर में जाना जाता था
रामेर की वजह से कहते हैं कि 1500 साल
पहले सूरत का पड़ोसी रामेर वर्ल्ड बिजनेस
हब हुआ करता था म्यांमार चाइना और सुमत
जैसे कंट्रीज के लोग यहां ट्रेड करने आते
थे थे इस शहर में इतना पैसा था कि इसके
अमीरी देखकर पुर्तगीज ने इस पर अटैक कर
दिया इसी वजह से लोग रामेर छोड़कर सूरत
शिफ्ट हो गए और यहीं पर उन्होंने अपने
कारोबार भी जमाए अब सूरत के पास समंदर का
किनारा तो पहले से ही था ऊपर से अलग-अलग
प्रोडक्शन यूनिट लगने के कारण यह
प्रोडक्शन हब भी बन गया इस शहर में
बड़े-बड़े पोर्ट बने थे जहां से विदेशों
में माल एक्सपोर्ट होता था इसीलिए मुगल
एरा में सूरत उनकी इकोनॉमिकल कैपिटल बन
गया 11 जनवरी 1613 को ईस्ट इंडिया कंपनी
ने भी अपनी पहली फैक्ट्री सूरत में लगाई
इसके लिए उन्होंने बाकायदा जहांगीर से
परमिशन ली यह लोग रजाई गद्दे और सिल्क
बनाते थे जिन्हें वह बड़े-बड़े शिप के
जरिए लंदन एक्सपोर्ट करते थे 1633 आते-आते
सूरत एक बड़ी पोर्ट सिटी बन गया जहां के
इंपोर्ट एक्सपोर्ट से मुगलों को इतना
टैक्स मिलता था कि वह मालामाल हो गए तभी
तो औरंगजेब से बदला लेने के लिए छत्रपति
शिवाजी महाराज ने सूरत पर दो बार अटैक
किया कहते हैं कि म ने पूरे शहर को जला
डाला था जिस वजह से सूरत में उनकी दहशत
फैल गई इस हमले की वजह क्या थी और यहां से
मराठों को कितना खजाना मिला इसकी कहानी हम
आपको पहले ही सुना चुके हैं बस इतना जान
लीजिए कि मुगलों के बाद सूरत मिला मराठों
को और 1759 आते-आते यह गोल्ड का भी सबसे
बड़ा एक्सपोर्टर बन गया यहां वर्ल्ड क्लास
शिप मैन्युफैक्चर होने लगे लेकिन 1790
आते-आते कहानी एक बार फिर बदली हुआ यूं कि
इस साल आई एक पडेम ने सूरत के 1 लाख लोगों
की जान ले ली वहीं
18735 कांठा के पास एक गांव है पालनपुर इस
गांव के रहने वाले जैन खुद को पालनपुरी
जैन कहा करते थे और इन्हीं में से एक थे
सूरजमल लू भाई जैन जो सिर्फ 15 साल की
उम्र में पालनपुर से बंबे आ गए यहां
उन्होंने डायमंड के बिजनेस में हाथ आजमाया
और इतनी कामयाबी पाई कि
18951 फर्म खोल ली देखते ही देखते
उन्होंने रंगून कोलकाता यहां तक कि
एंटवर्प में भी ब्रांचेस खोली और उनका
व्यापार करोड़ों में पहुंच गया उन्हीं की
तरह अमूल भाई खूबचंद पारिक भी 12 साल की
ऐज में ज्वेलरी बिजनेस में आ गए कहते हैं
कि वह इतने नायाब ज्वेलरी बनाते थे कि
रॉयल फैमिलीज वॉयस रॉय यहां तक कि नवाब भी
उनसे ज्वेलरी खरीदते थे खुद पालनपुर के
नवाब ने उन्हें शाह सौदागर सेठ का टाइटल
दिया और इन दोनों के सक्सेस ने पालनपुरी
लोगों को ज्वेलरी बिजनेस में आने के लिए
मोटिवेट किया 1909 में पालनपुरी जैनों ने
डिसाइड किया कि वोह इस बिजनेस में धाक
जमाने के लिए विदेशों तक जाएंगे इसके बाद
कई पालनपुरी जैन एंटवर्प पहुंचे जहां रफ
डायमंड मिलता था यहां से अच्छी क्वालिटी
के डायमंड खरीदकर यह भारत लाए और सूरत में
इनकी पॉलिशिंग करवाकर इन्हें यूरोप ले
जाकर बेच दिया इतिहास बताता है कि यह वो
दौर था जब भारत ब्रिटिशर्स का गुलाम था
लोगों के पास इनकम के ज्यादा सोर्स नहीं
थे इसीलिए कारीगर बहुत कम दामों पर काम
करते थे सूरत के कारीगरों ने बहुत ही
सस्ते में इन डायमंड को पॉलिश किया इस वजह
से पालनपुरी जैन कम दाम पर हीरे बेचकर भी
अच्छा मुनाफा कमाने लगे इधर सूरजमल और
अमोलक भाई ने भी अपने गांव के लोगों की
बहुत हेल्प की सूरजमल अपने यहां काम करने
आए पालनपुर के लोगों को रहना खाना फ्री
में देते थे उन्होंने मुंबई के जावेरी
बाजार में 300 लोगों को अपना बिजनेस सेटअप
करवा के दिया उनके फिलांथस नेचर के कारण
लोग उन्हें अला यानी कि भगवान भी कहते थे
इसी तरह अमोलक भाई ने अपने गांव के बहुत
से नौजवानों का खर्चा खुद उठाया उन्होंने
उनके रहने खाने का मैनेजमेंट तो किया ही
साथ ही बिजनेस सेटअप करने में भी काफी मदद
की इस तरह के लोगों के कारण पालनपुरी
जैनों को डायमंड बिजनेस में एंटर करने में
कोई दिक्कत नहीं आई हालांकि यूरोप के
डायमंड ट्रेड में पैर जमाना इतना भी आसान
नहीं था इसमें पालनपुरी जैनों को कई
दिक्कतें आई जिसमें सबसे बड़ी दिक्कत थी
खाने की दरअसल जैन प्योर वेजिटेरियन होते
हैं यह लोग तो लहसुन प्याज आलू और गाजर
जैसी जमीन में उगने वाली चीजें भी नहीं
खाते ऐसे में खाना यूरोप में इनके लिए एक
बड़ी समस्या थी ऊपर से देश छोड़कर जाने से
यह अपने कल्चर से भी दूर होते जा रहे थे
तीसरी सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि उस वक्त
एंटवर्प के डायमंड बिजनेस पर जूश लोगों की
मोनोपोली थी यह लोग काफी यूनाइट ड रहते
बिजनेस ग्रो करने में एक दूसरे की हेल्प
करते एक दूसरे को आसानी से लोन दे देते और
अगर झगड़ा हो जाता तो निपटारा इनके कोट
करते जहां दोनों पार्टीज के बीच फटाफट
सेटलमेंट हो जाता और ज्यादा टाइम वेस्ट भी
नहीं होता मने एंटवर्प जुश लोगों की
मुट्ठी में था और यहां धाग जमाना किसी के
लिए भी आसान नहीं था लेकिन पालनपुरी जैन
लोगों को यहां काम आई उनकी अपनी ईमानदारी
और गुड बिहेवियर इतिहास की माने तो
पालनपुर उस दौर में एक रियासत हुआ करता था
जहां रहते तो जैन थे लेकिन यहां राज
लोहानी पठानों का था 600 सालों तक यहां
पठान और जैन मिलकर रहे यहां कभी भी हिंदू
मुस्लिम राइट्स हुए ही नहीं उल्टे जैनों
ने तो नवाबों के साथ मिलकर तरक्की का
रास्ता तय किया इसी तरह ये लोग जुश लोगों
के साथ भी घुलमिल गए जोइश लोगों ने देखा
कि भारत के ये गुजराती हीरो को अंगड़िया
के जरिए ट्रांसपोर्ट करते हैं अंगड़िया एक
कुरियर बॉय होता था जो डायमंड लाने ले
जाने का काम करता था यह भरोसा करके उसे
करोड़ों के हीरे दे देते थे और अंगड़िया
भी कभी बेईमानी नहीं करता स्टांप के बजाय
यह लोग साधारण पेपर पर ही ट्रांजैक्शन और
कांट्रैक्ट्स की सारी डिटेल लिखते जिसे
चिट्ठी कहते थे अंगड़िया यह चिट्ठी लेकर
पॉलिशिंग सेंटर जाता वहां से पॉलिश कराकर
हीरे वो वापस ले आता इस पूरे प्रोसेस में
टाइम और रिसोर्सेस की काफी बचत होती और यह
तरीका जुश लोगों को भी काफी पसंद आया इसके
अलावा जुश लोगों को इनसे कोई प्रॉब्लम
इसलिए भी नहीं थी क्योंकि पालनपुरी जैन
स्मॉल डायमंड में ट्रेड करते थे एंव बेस्ड
डायमंड मर्चेंट सुरेश मेहता बताते हैं कि
सीजी मेहता एंड कंपनी बनाने वाले उनके
पिता चंदू भाई गंभीर मल मेहता 1925 में
पहली बार एंट वा पाए थे यहां वो एक जुश
फैमिली के घर पेइंग गेस्ट बनकर रहते थे और
हर डेढ़ साल में एक बार अपनी फैमिली से
मिलने पालनपुर जाते थे हेमचंद ब्रदर्स के
हेमचंद भाई मोहनलाल जावेद पालनपुर के
सूरजमल लल्लू भाई जैसे डायमंड मर्चेंट भी
उन दिनों एंटवर्प शिफ्ट हो गए थे ये लोग
मार्केट से ऑर्डर लेकर एंटवर्प से हीरे
खरीदते ये लोग ज्यादा करके 8 10 या 20
कैरेट वाले छोटे हीरे खरीदते और डाक से
उन्हें भारत भेज देते छोटे हीरों के
कारोबार में मार्जिन कम होता था इसलिए जुश
लोग इन्हें बेकार मानकर साइड कर देते माने
जुश लोग सिर्फ और सिर्फ बड़े डायमंड में
ट्रेड करते थे इसलिए इन्होंने पालनपुरी
जैनों को छोटे डायमंड में ट्रेड करने से
कभी नहीं रोका इस तरह पालनपुरी जैन
एंटवर्प के डायमंड ट्रेड में सेट होने लगे
ये वहां से अच्छी क्वालिटी के हीरे इंडिया
भेजते जहां सूरत में इनकी पॉलिशिंग होती
इसके बाद कोई हीरा बिकता तो ठीक वरना यह
उसे यूरोप में बेचते थे डायमंड ट्रेड में
इंग्लिश का यूज होना भी इनके लिए वरदान
साबित हुआ और इन्हीं के कारण सूरत में
डायमंड पॉलिशिंग का काम भी चलता रहा लेकिन
फिर आया 1 सितंबर
1939 जब दुनिया में शुरू हुआ सेकंड वर्ल्ड
वॉर कहते हैं कि इस जंग का सबसे बड़ा असर
पड़ा जुश लोगों पर क्योंकि उस वक्त जर्मनी
का चांसलर था एडोल्फ ट हिटलर और हिटलर
यहूदियों से नफरत करता था इतिहास की माने
तो उसने 65 पर जूश पॉपुलेशन को खत्म कर
दिया और इसका इफेक्ट डायमंड बिजनेस पर भी
पड़ा इस वर्ल्ड वॉर के दौरान ही जापान ने
म्यांमार पर अटैक किया जो उस वक्त बहुत
बड़ा डायमंड पॉलिशिंग सेंटर हुआ करता था
कहते हैं कि उस दौर में हीरे की कटाई और
पॉलिशिंग का मेजर वर्क म्यांमार के कैपिटल
रंगून में होता था लेकिन इस अटैक के बाद
वहां के कार्य कररों को रंगून छोड़ना पड़ा
और वह अपने घर यानी कि सूरत वापस आ गए अब
ये लोग सूरत में ही डायमंड पॉलिशिंग करने
लगे जिससे सूरत में स्किल्ड लेबर्स की
फोर्स जमा हो गई इधर वर्ल्ड वॉर खत्म होते
ही डायमंड की ओवर सप्लाई की समस्या भी
खत्म हो गई 1947 में भारत आजाद हो गया
1948 में जुश लोगों को अपना एक देश इजराइल
मिल गया जूश अपना डायमंड बिजनेस इजराइल की
कैपिटल सिटी तेल अवीव में ले गए जिसके बाद
तेल अवीव वर्ल्ड डायमंड हब बन गया इधर
सूरत में भी यह काम दिनोंदिन बढ़ता जा रहा
था तभी मशहूर डायमंड कंपनी डिबियर्स ने
कुछ कुछ ऐसा किया कि डायमंड बिजनेस का
पूरा गेम चेंज हो गया हुआ यूं कि 1947 में
डी बियर्स ने डायमंड फॉरएवर नाम से एक
कैंपेन चलाया इस कैंपेन में लोगों को
बताया गया कि डायमंड ही प्यार की असल
निशानी है एक लवर को प्यार का इजहार करने
के लिए डायमंड गिफ्ट करना जरूरी है जिसके
बाद डायमंड की डिमांड अचानक से बढ़ गई इस
कैंपेन ने लोगों के दिमाग पर ऐसी छाप
छोड़ी कि लोग डायमंड के दीवाने हो गए
एंगेजमेंट में डायमंड रिंग पहना ने का
ट्रेंड भी यहीं से आया और इसी कैंपेन के
कारण अगले 10 सालों में डायमंड की डिमांड
80 पर तक बढ़ गई हालांकि सूरत के डायमंड
ट्रेड में बूम आना अब भी बाकी था और यह
बूम आया तब जब इस बिजनेस में एंट्री की
काठियावाड़ी पटेलों ने काठियावाड़ गुजरात
का एक रीजन है इस रीजन में रहने वाले पटेल
लोग एक वक्त पर खेती किया करते थे लेकिन
यह इलाका बार-बार सूखे की चपेट में आता था
जिसके कारण बहुत सारे काठियावाड़ी पटेल
अपने गांव शहर छोड़कर सूरत आ गए यहां
इन्होंने बड़ी मेहनत से टेक्सटाइल
इंडस्ट्री की शुरुआत की और देखते ही देखते
सूरत को टेक्सटाइल का हब बना दिया
काठियावाड़ी पटेलों की मेहनत और बिजनेस
स्किल का असर ही था कि सूरत जरी इंडस्ट्री
का भी हब बन गया और लोग इसे सिल्क सिटी के
नाम से जानने लगे उस दौर में इनका माल
सूरत से अमेरिका और यूरोप एक्सपोर्ट होता
था इसलिए काम के सिलसिले में यह अक्सर
अब्रॉड जाते रहते थे कहते हैं कि अमेरिका
जाने वाले काठियावाड़ी पटेलों ने देखा कि
यहां डायमंड की जबरदस्त डिमांड थी वहीं ये
लोग इस बात से तो थे कि सूरत में इनकी
पोलंग काफी सस्ती होती है इसलिए इन्होंने
भी अमेरिका और यूरोप से हीरे खरीदकर सूरत
लाने शुरू कर दिए जहां सूरत से इनकी
पॉलिशिंग करवाकर यह सीधे अब्रॉड में यह
हीरे बेचने लगे इतिहास कहता है कि भले ही
डायमंड बिजनेस में इनकी एंट्री पालनपुरी
जैनों से लेट हुई थी लेकिन इन्होंने इतना
तेजी से ग्रोथ की कि आज सूरत में सबसे
ज्यादा डायमंड प्रोसेसिंग फैक्ट्रीज
इन्हीं के पास है कहते हैं कि काठियावाड़ी
पटेलों और पालनपुरी जैनों ने एक स्ट्रांग
नेटवर्क बिल्ड किया वहीं सूरत के कारीगर
भी काफी स्किल्ड थे यहां तराशे गए हीरे
बेहद खूबसूरत होते थे और पॉलिशिंग तो
सस्ती थी ही काम भी यहां टाइम पर हो जाता
था दूसरा सबसे बड़ा प्रॉफिट यह था कि सूरत
अरेबियन सी के कोस्ट पर था इसीलिए पानी के
रास्ते यहां डायमंड लाना और लेजाना भी
काफी आसान था इसी वजह से एंटवर्प के
साथ-साथ रूस कैनेडा और साउथ अफ्रीका से भी
हीरे सूरत आने लगे और सूरत में हीरे
तराशने का काम लगातार बढ़ता गया इतिहास की
माने तो 1960 का वह दौर था जब सूरत के
डायमंड बिजनेस ने रफ्तार पकड़ी 1970
आते-आते यहां 20000 डायमंड वर्कर्स काम कर
रहे थे इसी साल वीनस 12 के फाउंडर सेवंती
भाई शाह ने परफॉर्मेंस बेस्ड पे सिस्टम
शुरू किया उन्होंने तय किया कि जो जितना
अच्छा काम करेगा उसे उतना ज्यादा पैसा
मिलेगा अपने डायमंड की क्वालिटी बेस्ट
रखने के लिए उन्होंने खुद से डायमंड चेक
करने की बजाय एक्सपर्ट लोगों को
अपॉइंटमेंट वेशन का असर ही कहें कि सूरत
के कारीगर ने वर्ल्ड क्लास डायमंड तराशे
उनकी तरह ही श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स के
फाउंडर गोविंद भाई ढोलकिया ने अपने
कारीगरों के लिए रेगुलर ट्रेनिंग
प्रोग्राम शुरू किया ताकि अगर मार्केट में
कोई भी नई टेक्निक आए तो उनके कारीगर सीख
सके इस तरह टाइम के साथ-साथ सूरत के
डायमंड मर्चेंट्स ने नई टेक्नोलॉजीज अपनाई
जिस वजह से सूरत में तराशे गए हीरो की
डिमांड बढ़ती चली गई 1980 तक तेल अवीव से
वर्ल्ड का 80 पर डायमंड ट्रेड होता था जो
धीरे-धीरे सूरत में शिफ्ट होने लगा कुछ ही
सालों में यहां 5000 डायमंड कंपनियां खुल
गई और दुनिया भर की बड़ी-बड़ी डायमंड
कंपनीज के हीरे तराशने का काम सूरत को
मिला सूरत में डायमंड की लेबर कॉस्ट कितना
कम है इसका अंदाजा आपको 2007 की एक
रिपोर्ट से ही लग जाएगा जिसके मुताबिक पर
कैरेट डायमंड का लेबर कॉस्ट एंटवर्प में
$150 तेल अवीव में $100 चाइना में $17 और
इंडिया में $10 था यानी कि आप 10 कैरेट के
एक हीरे को तेल अवीव में पॉलिश कराते हैं
तो आपको 80000 खर्च करने होंगे वहीं सूरत
के कारीगर सिर्फ 8000 में यह काम कर देते
हैं लेबर कॉस्ट में इतना फर्क होने के
बावजूद सूरत में तराशे गए हीरे बेहतरीन
होते थे यही कारण था कि वर्ल्ड के टॉप 10
डायमंड प्रोड्यूसर्स में ना होने के
बावजूद इंडिया डायमंड पॉलिशिंग की फेवरेट
जगह बन गया आज दुनिया के 90 पर हीरे
इंडिया से एक्सपोर्ट होते हैं जिनमें 99
पर सूरत में तराशे जाते हैं द ऑब्जर्वेटरी
ऑफ इकोनॉमिक कंपलेक्सिटी की एक रिपोर्ट के
मुताबिक सूरत हर साल 29.4 अरब डॉलर यानी
कि 2.16 लाख करोड़ रए से भी ज्यादा का
डायमंड ट्रेड करता है यहां सड़कों से लेकर
मल्टी स्टोरी बिल्डिंग्स तक में हीरे
तराशने का काम होता है जिसका प्रोसेस शुरू
होता है एक्सप्लोरिंग एंड माइनिंग से
जिसमें सबसे पहले हीरे की खोज की जाती है
इसके बाद होती है सर्टिंग एंड वेविंग
जिसमें हीरे को उसकी साइज शेप और क्वालिटी
और कलर के बेस पर अलग-अलग किया जाता है
फिर होती है कटिंग एंड पॉलि पिंग जिसमें
डायमंड को कटिंग और पॉलिशिंग कंपनीज खरीद
लेती है और यहां बहुत ही स्किल्ड लेबर्स
इन्हें पॉलिश करते हैं हीरे को तराशना भी
अपने आप में खास होता है इसमें घंटों की
मेहनत लगती है और इसे बहुत ही ध्यान से
करना पड़ता है जरा से भी गड़बड़ी होने पर
हीरे की क्वालिटी खराब होने का डर रहता है
लेकिन सूरत के स्किल्ड वर्कर्स यह काम
बहुत ही शानदार ढंग से करते हैं खैर पॉलिश
होने के बाद फोर्थ स्टेज आती है
सर्टिफिकेशन जिसमें इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल
इंस्टिट्यूट यानी आईजीआई हीरे को उसकी
कटिंग कैरेट क्लेरिटी और कलर के बेस पर
सर्टिफिकेशन देते हैं इसके बाद इन हीरों
से बनती है ज्वेलरी ये पोलिश डायमंड्स
सर्टिफाइड डायमंड ज्वेलरी मैन्युफैक्चरर
को बेचे जाते हैं जो इनकी ज्वेलरी बनाते
हैं ये ज्वेलरी ज्वेलरी मर्चेंट खरीदते
हैं और यहां से इन्हें कस्टमर को बेच दिया
जाता है आज सूरत में सड़क से लेकर मल्टी
स्टोरी बिल्डिंग्स तक में डायमंड पॉलिशिंग
का काम होता है आज भी यहां के हीरा बाजार
और मिनी बाजार में लोग सड़क किनारे बैठकर
करोड़ों के हीरे तराश देते हैं वहीं
गुजरात सरकार ने इस बिजनेस को बढ़ावा देने
के लिए 33200 करोड़ लगाकर एक शानदार
डायमंड बूड्स बनवाया है जो 62 लाख
स्क्वायर फीट में फैला है और दुनिया का
सबसे बड़ा ऑफिस है सूरत को डायमंड हब
बनाने के पीछे सबसे बड़ा हाथ इस ट्रेड से
जुड़े लोगों का है मीडिया रिपोर्ट्स की
माने तो यहां की ज्यादातर डायमंड कंपनीज
के ओनर गुजराती हैं गुजरात के कल्चर में
लोग बिजनेस को बहुत प्रायोरिटी देते हैं
ये लोग जानते हैं कि अच्छी क्वालिटी
डिलीवर करने के लिए अपने एंप्लॉयज को खुश
रखना कितना जरूरी है इसलिए डायमंड पॉलिश
करने वाले इन कारीगरों को सैलरी के
साथ-साथ इंसेंटिव और बोनस भी भर-भर के
मिलते हैं हरे कृष्णा एक्सपोर्ट प्राइवेट
लिमिटेड के चेयरमैन सावजी भाई ढोलकिया
अपने वर्कर्स को दिवाली पर कभी फ्लैट्स
गिफ्ट करते हैं कभी कार तो कभी ज्वेलरी
बोनस में देते हैं सावजी भाई बताते हैं कि
जितना भी प्रॉफिट होता है उसका 10 पर
पार्ट वो अलग रख लेते हैं इसी से दीपावली
के गिफ्ट खरीदे जाते हैं फिर जिनके पास घर
नहीं होता उसे घर मिलता है जिसके पास
गाड़ी नहीं होती उसे गाड़ी मिलती है 2015
के दिवाली बोनस में उन्होंने अपने
एंप्लॉयज को 200 फ्लैट्स दिए थे और 2018
में उन्होंने 600 कारें गिफ्ट की थी इनकी
कंपनी में दिवाली की छुट्टी भी 20 दिनों
की होती है वी जयंतीलाल एंड कंपनी हरी
कृष्ण डायमंड्स श्री राम कृष्ण लक्ष्मी
डायमंड्स गीतांजलि ग्रुप्स किरण जेम्स
एशियन स्टार कंपनी और धर्म नंदन डायमंड्स
प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनीज सूरत की
बड़ी डायमंड कंपनीज में आती हैं जहां से
लिए हीरे आज दुनिया पहनती है ये पालनपुरी
जैन और काठियावाड़ी पटेलों की करामात ही
कहें कि आज एंटवर्प तक में इनका सिक्का
चलता है इन्हीं की वजह से तेल अवीव का
डायमंड ट्रेड अब 80 पर से सिमटकर 40 पर आ
गया है और ये बचा हुआ 40 पर शिफ्ट हुआ है
सूरत में डायमंड ट्रेड को कंट्रोल करने
वाले शाह और मेहता जैसे सरनेम पालनपुरी
जैनों में ही आते हैं सूरत की डायमंड
कंपनियां अपने एंप्लॉयज को काफी सहूलियत
देती हैं बदले में मिलता है इन्हें
क्वालिटी वर्क और इसी से बनता है भारी
भरकम प्रॉफिट इसी वजह से आज सूरत में
लाखों लोग इस बिजनेस से जुड़े हैं और
इन्हीं की वजह से सूरत कहलाता है डायमंड
कैपिटल ऑफ इंडिया लेकिन डायमंड कैपिटल से
अलग एक कहानी डायमंड कर्स की भी है कर्स
यानी कि श्राप दुनिया के सबसे फेमस हीरे
जैसे दिहो कोहिनूर और ब्लैक डायमंड को
शापित माना जाता है कोहिनूर के बारे में
कहा जाता है कि यह मुगल एंपायर से होता
हुआ नादिर शाह के पास पहुंचा इसके बाद
महाराजा रणजीत सिंह को मिला और फिर हाथ
लगा अंग्रेजों के जहां जहां-जहां यह गया
वहां वहां के साम्राज्य तबाह होते गए
इसीलिए इसे श्रापित माना गया और श्राप को
खत्म करने के लिए इसे किंग की बजाय
ब्रिटिश क्वीन को पहनाया गया आज ये लंदन
के टावर ऑफ लंडन में है वहीं ब्लैक डायमंड
की बात करें तो इसे 19th सेंचुरी में भारत
के एक ब्रह्मा मंदिर से चुराया गया था
हालांकि कुछ दिन बाद ही इसे चुराने वाले
शख्स की मौत हो गई जिसके बाद यह अलग-अलग
तीन लोगों के पास गया और तीनों ने सुसाइड
कर लिया जिनमें एक रूसी प्रिंसेस भी थी
यहीं से इस हीरे के शापित होने की कहानी
फैल गई और शप का असर कम करने के लिए इसे
काटकर इसकी मणियाना गई कहते हैं कि ये
ट्रिक काम भी आई और मनिया जिसके पास भी गई
उसकी जान को कोई खतरा नहीं रहा वहीं द होप
को भारत के एक मंदिर से चुराया गया था
कहते हैं कि जब यह चोरी हुआ तो इसे श्राप
मिला कि यह जिसके पास भी जाएगा वहां तबाही
मचाएगा और इसने क्या तबाही मचाई इसकी
कहानी हम आपको पहले ही सुना चुके हैं
दोस्तों दुनिया के लिए हीरा हमेशा एक
फैंटेसी रहा है यह इतना खास है कि वर्ल्ड
की टॉप 10 एक्सपेंसिव ज्वेलरी में से नौ
हीरे से बनी हुई है 59.6 कैरेट का पिंक
डायमंड 462 करोड़ की कीमत के साथ दुनिया
का सबसे महंगा हीरा है 5 साल पहले रूस में
पहली बार एक रेयर डायमंड मिला जिसके अंदर
एक और डायमंड था इसकी वैल्यू थी 4426
करोड़ और इसका नाम था मेट्री ओश का जो
रशिया की ट्रेडिशनल डोल का नाम है वहीं
बात करें पन्ना की तो यहां के थर्ड किंग
सभा सिंह जुदेव ने तो यह ऐलान करवा दिया
था कि अगर जनता हीरे की माइनिंग करना चाहे
तो वह कर सकती है और मुफ्त में हीरे ले जा
सकती है उनके राज में दो कैरेट तक का हीरा
जिसे भी मिल जाता वह उसे खुद बेच सकता था
आज भी इंडिया में डायमंड माइनिंग होती है
लेकिन बोत्सवाना कांगो कनाडा अंगोला और
जिंबाब्वे जैसे देशों में सबसे ज्यादा
हीरे मिलते हैं लेकिन प्राउड की बात यह है
कि इन्हें पहचान डायमंड सिटी ऑफ इंडिया
यानी कि सूरत में ही मिलती है दोस्तों इसी
तरह भारत के अलग-अलग शहर अपने आप में खास
है। लेकिन यह भारत को कैसे खास बनाते हैं
इसकी कहानी भी हम आपके लिए लेकर आएंगे
लेकिन उससे पहले आपको हमें यह बताना होगा
कि आपको हमारी यह कहानी कैसी लगी और आप
हमें कहां से देख रहे हैं हम मिलेंगे आपको
नई कहानी के साथ तब तक के लिए धन्यवाद।

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